हिंदी कहानियां - भाग 178
काश! हमें इज़हार करना आता
काश! हमें इज़हार करना आता वह मेरे सामने खड़ी थी, आसमान से उतरी किसी परी की तरह। मेरी नजरों को जैसे उसने कैद कर लिया था। मैं उसे घूरे जा रहा था। अचानक हाथ से चाय का ग्लास छूटने पर मैं सकपकाया और एक नजर उसने भी मुझे देखा। चाय की दुकान वाले से ग्लास के पैसे काट लेने की बात कहते हुए मै वापस उसे देखने लगा। बड़ी खूबसूरत सुबह थी वह। अपने पापा के साथ होटल से जलेबी लेने आई थी वह। कुछ पल बाद वो अपने पापा के साथ चली गई पर मैं उस होटल में कुछ उधार कर आया था। शायद उसके ख्यालों का उधार था इसलिए अब रोज वहां जाने लगा था। रोज वो आती। मैं उसे जी भर के देखता और दोनों के बीच एक अनकही बातचीत होती पर मैं कभी अपनी आंखों की जुबां को लफ्ज न दे सका। पढ़ाई पूरी हो गई और मैं एक कॉलेज में प्रिंसिपल बन गया। एक रोज उसी कॉलेज में हाथों में मेहंदी लगाए उसी परी को एक बच्चे को ले जाते देखा।दिल ने कहा, एक बार हिम्मत करके अपने दिल की बात उसे बता ही देनी चाहिए। लेकिन हिचक भी थी। मैं उसे एकटक देखे जा रहा था। वो मुझसे धीरे-धीरे दूर जा रही थी। मैं तेजी से उसकी ओर भागा, उसके कुछ दूर पहुंचने से पहले ही वह पीछे मुड़ी। मैं वहीं रुक गया। वो मेरे पास आई। मेरी सांसे तेज हो गई थीं। वह बोली, 'तुम्हें प्यार का इज़हार करना नहीं आता। दिल जोड़ना नहीं आता। शायद गिलास तोड़ने वाले कभी दिल टूटने की आवाज नहीं सुन पाते हैं। उन्हें दिल का टूटना भी गिलास टूटने जैसा ही लगता है।' इतना कहकर वो चल दी। थोड़ा चलकर फिर मुड़ी। बोली, काश! तुम्हें प्यार का इज़हार करना आता।